यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है. परन्तु यह नहीं कि एक एक शब्द ही सच होगा. उफ़! कितना समझाना पड़ता है.
एक समय की बात है. राष्ट्रीय फैशन तकनीकी संस्थान बैंगलोर में स्वाति, विदिशा, विनीता एवं सुप्रीत नामक लड़कियां थीं. ये चारों लड़कियां ऋचा नामक लेखिका की कक्ष मित्राएं थी. हर छात्रावास की तरह निफ्ट के छात्रावास में भी कुछ खट्टी कुछ मीठी कहानियाँ होती रहती थीं. जैसे चूहे वाली कहानी का विवरण मैं कुछ सालों पहले दे ही चुकी हूँ.
तो ऋचा एक आलसी स्वभाव की लड़की थी. कॉलेज के २-४ किलोमीटर के दायरे के बाहर जाना उसे कदापि स्वीकार नहीं था जब तक कोई अति भयंकर इमरजेंसी न हो. तो एक बार स्वाति, विदिशा, विनीता, सुप्रीत कुछ अन्य सहेलियों के साथ गरुड़ा मॉल नामक स्थान घूमने की योजना बनाई. जब उन्होंने ऋचा से चलने के लिए पूछा तो वह हमेशा की तरह कोई बहाना मारकर इधर-उधर हो ली. और यह सब लडकियां घूमने निकल पड़ीं.
उस समय गरुड़ा मॉल बैंगलोर के सबसे बड़े मॉल्स में से एक हुआ करता था. वहां पहुंचकर उन्होंने अनेकानेक लड़कियों द्वारा किये जाने वाली क्रियाएं जैसे घूमना, दुकानों में कपड़ों की गहरी समीक्षा, फ़ूड कोर्ट में थोडा-थोडा खाना चुगना इत्यादि काम किये. यह सब कर वह पहुँचे स्केयरी हाउस. स्केयरी हाउस एक भूत बंगला टाइप जगह है जहाँ आप एक ओर से अन्दर जाते हैं, और विभिन्न प्रकार के भूतों से जूझते हुए दूसरे कोने से डरे-डराए बाहर निकलते हैं.
अब यह तो सब जानते ही हैं कि लडकियाँ कॉकरोच जैसी तुच्छ वस्तु देखकर सँसार को हिला देने वाली चीखें निकालती हैं. तो भूत तो फिर बड़ी चीज़ है. दिल में डर और चेहरे पर "अजी दुनिया में बस हम ही दिलेर हैं जी" का भाव लिए, स्केयरी हाउस के गेट पर यह लडकियाँ खड़ी हुईं. विदिशा इन सबमें सबसे छोटी बच्ची थी. उसे थोडा डर लगना शुरू हुआ. वह बोली "स्वाति दीदी अन्दर नहीं जाते हैं. वापस चलते हैं." जबतक स्वाति कुछ कहती "चलिए अन्दर चलिए" कहकर बाहर खड़े आदमी ने इन सबको अन्दर धकेल दिया और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया.
इस प्रकार अनेक प्रकार के भूतों से जूझती हुईं और और आगे बढती हुईं सभी लडकियाँ बस बाहर निकलने वाले द्वार तक पहुँच ही गयी थीं कि कहीं से एक छोटा सा भूत भागता हुआ आया और दो तीन लड़कियों के बीच में से निकलने की कोशिश करने लगा. डर और हडबडाहट में विनीता भागी और औंधे मुँह गिर पड़ी एवं उसने अपना पैर तोड़ लिया. अब मिनाक्षी का पारा काफी ऊपर जा चुका था. उसने छोटे भूत को डांटना शुरू किया "आपको तमीज़ नहीं है? देखिये वो गिर गयी है. चोट लग गयी है. अभी हम सब गिर जाते और सबको चोट लग जाती तो? हद्द होती है बदतमीजी की. ये कोई बात है.. " भूत धीरे से "सॉरी" बोलकर कोने में कट लिया. इस प्रकार इन सब का स्केयरी हाउस का भूतिया सफ़र खत्म हुआ.
यूँ तो स्केयरी हाउस का मकसद लोगों को डराना रहा होगा, पर मेरे मित्र वहां भूतों से डांट खा एवं उन्हें डपट कर आये. लडकियाँ सचमुच निराली होती हैं. :)
एक समय की बात है. राष्ट्रीय फैशन तकनीकी संस्थान बैंगलोर में स्वाति, विदिशा, विनीता एवं सुप्रीत नामक लड़कियां थीं. ये चारों लड़कियां ऋचा नामक लेखिका की कक्ष मित्राएं थी. हर छात्रावास की तरह निफ्ट के छात्रावास में भी कुछ खट्टी कुछ मीठी कहानियाँ होती रहती थीं. जैसे चूहे वाली कहानी का विवरण मैं कुछ सालों पहले दे ही चुकी हूँ.
तो ऋचा एक आलसी स्वभाव की लड़की थी. कॉलेज के २-४ किलोमीटर के दायरे के बाहर जाना उसे कदापि स्वीकार नहीं था जब तक कोई अति भयंकर इमरजेंसी न हो. तो एक बार स्वाति, विदिशा, विनीता, सुप्रीत कुछ अन्य सहेलियों के साथ गरुड़ा मॉल नामक स्थान घूमने की योजना बनाई. जब उन्होंने ऋचा से चलने के लिए पूछा तो वह हमेशा की तरह कोई बहाना मारकर इधर-उधर हो ली. और यह सब लडकियां घूमने निकल पड़ीं.
उस समय गरुड़ा मॉल बैंगलोर के सबसे बड़े मॉल्स में से एक हुआ करता था. वहां पहुंचकर उन्होंने अनेकानेक लड़कियों द्वारा किये जाने वाली क्रियाएं जैसे घूमना, दुकानों में कपड़ों की गहरी समीक्षा, फ़ूड कोर्ट में थोडा-थोडा खाना चुगना इत्यादि काम किये. यह सब कर वह पहुँचे स्केयरी हाउस. स्केयरी हाउस एक भूत बंगला टाइप जगह है जहाँ आप एक ओर से अन्दर जाते हैं, और विभिन्न प्रकार के भूतों से जूझते हुए दूसरे कोने से डरे-डराए बाहर निकलते हैं.
अब यह तो सब जानते ही हैं कि लडकियाँ कॉकरोच जैसी तुच्छ वस्तु देखकर सँसार को हिला देने वाली चीखें निकालती हैं. तो भूत तो फिर बड़ी चीज़ है. दिल में डर और चेहरे पर "अजी दुनिया में बस हम ही दिलेर हैं जी" का भाव लिए, स्केयरी हाउस के गेट पर यह लडकियाँ खड़ी हुईं. विदिशा इन सबमें सबसे छोटी बच्ची थी. उसे थोडा डर लगना शुरू हुआ. वह बोली "स्वाति दीदी अन्दर नहीं जाते हैं. वापस चलते हैं." जबतक स्वाति कुछ कहती "चलिए अन्दर चलिए" कहकर बाहर खड़े आदमी ने इन सबको अन्दर धकेल दिया और बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया.
अन्दर घुप्प अँधेरा था. "कितना अँधेरा है. कैसे आगे बढें?" हलके गुस्से में मिनाक्षी बोली. थोड़ी हिम्मत करके कुछ समय बाद इन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया. थोड़ा सा आगे चलने पर एक खतरनाक भूत अचानक कहीं से कूदकर हूsss हूsss करता हुआ आया. सारी लडकियाँ जोर- जोर से चिल्लाने लगीं और डर के मारे फ्रीज़ हो गयीं. सब भूत को देखकर आsss आsss करती हुईं ज़ोर से चीखीं. भूत ने थोड़ी देर हर एक को डराया. थोड़ी देर बाद चीख पुकार सुनकर शायद वह भी पक गया और बोला - " चलिए मैडम आगे बढिए. आगे बढिए." उसके उपरांत वह फिर धीरे-धीरे आगे बढे. अँधेरा बहुत ही ज्यादा था और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. थोड़ी आगे सफ़ेद चादर से कुछ ढका हुआ था. जैसे कोई लाश हो. जैसे ही यह आगे बढे सफ़ेद चादर के नीचे से कोई उठने लगा. सब लडकियाँ चिल्लायीं और पीछे की ओर जाने लगीं. तो लाश बोली " अरे पीछे नहीं मैडम आगे जाइए. आगे जाइए." तभी किसी ने अपने मोबाइल में लाइट जलाई तो लाश ने फिर टोका "मोबाइल अलाउड नहीं है मैडम. बंद करिये." जिसपर मिनाक्षी ने गुस्से में भरकर कहा " इतना अँधेरा है भैय्या. आगे कैसे जाएँ?"
इस प्रकार अनेक प्रकार के भूतों से जूझती हुईं और और आगे बढती हुईं सभी लडकियाँ बस बाहर निकलने वाले द्वार तक पहुँच ही गयी थीं कि कहीं से एक छोटा सा भूत भागता हुआ आया और दो तीन लड़कियों के बीच में से निकलने की कोशिश करने लगा. डर और हडबडाहट में विनीता भागी और औंधे मुँह गिर पड़ी एवं उसने अपना पैर तोड़ लिया. अब मिनाक्षी का पारा काफी ऊपर जा चुका था. उसने छोटे भूत को डांटना शुरू किया "आपको तमीज़ नहीं है? देखिये वो गिर गयी है. चोट लग गयी है. अभी हम सब गिर जाते और सबको चोट लग जाती तो? हद्द होती है बदतमीजी की. ये कोई बात है.. " भूत धीरे से "सॉरी" बोलकर कोने में कट लिया. इस प्रकार इन सब का स्केयरी हाउस का भूतिया सफ़र खत्म हुआ.
यूँ तो स्केयरी हाउस का मकसद लोगों को डराना रहा होगा, पर मेरे मित्र वहां भूतों से डांट खा एवं उन्हें डपट कर आये. लडकियाँ सचमुच निराली होती हैं. :)