August 07, 2009

मैंने दागा गोल मुझे पता न चला

आर्मी स्कूल अल्मोड़ा की हॉकी टीम से पूरा अल्मोड़ा थर्राता था। जब भी हमारे स्कूल की टीम का मैच होता था, हम बस जीतने के लिए जाते थे। ऐसा कोंई मैच न रहा होगा जिसे जिसे हमारी टीम ने न जीता हो। हॉकी के मैच में जाना बड़ा ही सुखदायी था। इसके दो कारण थे। पहला यह था की मैच अक्सर स्कूल के आखिरी घंटों में होता था। स्टेडियम तक जाने का समय, मैच के पहले के इंतज़ार का समय एवं मैच। यह सब मिलाकर हमारी अंत की कुछ पढ़ाई छूट जाती थी। स्कूल जाकर पढ़ाई न करने के सुख जैसा कोंई सुख न था। अतः यह था हमारा सुखदायी कारण नम्बर एक।
ऐसा माना जाता है की उत्साह बढ़ाने पर खिलाड़ियों का प्रदर्शन स्तर अच्छा हो जाता है। आर्मी स्कूल के खिलाड़ियों का भी होता था। इसलिए हम अपनी पूरी ताकत लगाकर गला फाड़ फाड़ कर, सभी खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने में तत्पर थे। साथ ही हामिद मैम भी काफ़ी तत्पर थीं। इस तत्परता के कारण अगले दिन मैम का गला पूर्णतया बैठा होता था। इसी कारणवश वह धीरे से ' सेल्फ- स्टडी' कहकर एक कोने में बैठ जातीं और पूरी कक्षा में खुशी की लहर दौड़ जाती। यह हुआ हमारा सुखदायी कारण नम्बर दो।

समय के साथ साथ हॉकी का चलन स्कूल में बढ़ा तो खिलाड़ी भी बढे। खिलाड़ी बढे तो एक टीम में फिट न हो पाये। धीरे-धीरे हॉकी की एक बी टीम बनी। थोड़ा और चलन और खिलाड़ी बढ़ने पर सी और डी टीम भी बन गयीं।
यह टीमें अपने प्रदर्शन के घटते क्रम में ऐ, बी, सी और डी थीं।

आर्मी स्कूल की डी टीम में राहुल नामक एक लड़का था। यह चौथी कक्षा का छात्र था। एक बार इस डी टीम का मैच किसी दूसरे स्कूल के साथ होना निश्चित हुआ। मैच १-१ के स्कोर के साथ बराबरी पर रहा। गौर करने लायक बात यह है की हमारी डी टीम भी इतनी शक्तिशाली थी की उसने दुसरे स्कूल की टीम को जीतने न दिया। मैच ड्रा करवाकर प्रसन्नचित्त डी टीम स्कूल की ओर वापस आ गई।

आर्मी स्कूल की डी टीम का राहुल नामक लड़का मेरा भाई था।
"कैसा रहा तुम्हारा मैच?" मैंने राहुल से पुछा।
"अच्छा था। ड्रो हो गया। " राहुल ने कहा।
"अच्छा गोल कितने हुए?"
" एक एक हुआ दोनों टीम की तरफ़ से।"
"हमारे यहाँ किसने किया?"
वो थर्ड क्लास का एक लड़का है उसने किया"
"अच्छा।"
इस संवाद के समय हमारे माता पिता शहर से बाहर हमारे ननिहाल गए हुए थे।

उत्तर भारत में दो मुख्य समाचार पत्र हैं - दैनिक जागरण और अमर उजाला। दोनों ही यदा कदा स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करते हुए पाये जाते हैं। इन दो समाचार पत्रों में से पहला वाला हमारे घर पर आता था। इस समाचार पत्र के आने और दूसरे के न आने से राहुल को काफ़ी नुक्सान हुआ। क्योंकि वह अपने बारे में छपी उस ख़बर से बेखबर रहा जो उस समाचार पत्र में थी जो हमारे घर पर नहीं आता था।

भोर की लालिमा अभी छंटी नहीं थी, चिडियां चहक रहीं थीं और पेडों के पत्तों पर ओस की बूँदें थीं। फ़ोन की घंटी बजी और मेरे उठाते ही मुझे अपनी माँ की चहकती हुई आवाज़ आई। "ऋचा राहुल का नाम आया है पेपर में। अमर उजाला में। "
"क्या?" आश्चर्य और अविश्वास मिश्रित आवाज़ में मैंने कहा।
मम्मी पढ़कर सुनाने लगीं "कल स्टेडियम में आर्मी स्कूल की डी टीम और महर्षि विद्या मन्दिर के बीच हुआ मैच ड्रा हो गया। आर्मी स्कूल की ओर से एकमात्र गोल राहुल ने किया........ अरे राहुल को बुला"
मैंने राहुल को आवाज़ दी और उसने भी मम्मी के मुह से स्वयं के द्बारा गोल किए जाने की ख़बर प्राप्त की।

"हा हा हा गोल किसी और ने किया और नाम तेरा आ गया। वाह!"
"मैंने ही किया था शायद। मुझे याद सा आ रहा है कि बौल मेरी हॉकी से लगती हुई गई थी। " बड़े बड़े कांडों के छोटे छोटे बयानबाज़ों की तरह अपने बयान को बदलता हुआ राहुल बोला।

स्कूल पहुचने पर कक्षा तीन का एक लड़का राहुल के पास आया।
"भैय्या आपका नाम राहुल है?" वह बोला।
"हाँ।" राहुल ने कहा।
"कल गोल क्या आपने किया था?"
"हाँ।" राहुल के चेहरे पर विजयी मुस्कान खिल उठी।
"पर वो तो कह रहा है कि गोल मैंने किया था." उसने एक बच्चे की ओर इंगित किया।
"अरे नहीं मैंने ही किया था।" कहकर राहुल ने उसको झिड़क कर भगा दिया।

तो इस प्रकार कक्षा चार का राहुल नामक वह लड़का उन बड़े बड़े लोगों का एक उदाहरण है जो न जाने कितने बड़े बड़े काम कर जाते हैं पर उन्हें स्वयं इस बात का आभास नहीं होता कि वे क्या कर गुज़रे हैं।

5 comments:

RaHuL said...

zabardast dd .. main haste haste ro pada... :')

goddess_amrita said...

waah bhai waah... jisne daga goal usi ko pata naa chala :P

chandresh said...

bahut hi sunder varnan

Richa said...

thank you bhaiya :)

Nihar Nautiyal said...

सालों बाद भेद खुल गया hahaha