यदि मेरा कोई मित्र मुझसे कहे कि मेरी माँ मुझसे प्रसन्न एवं संतुष्ट हैं तो मैं कहूँगी कि ये सरासर झूठ है। ऐसा हो ही नहीं सकता। यह मम्मियों की प्रकृति के विपरीत बात है और उसी प्रकार का घोर असत्य है जैसा कि हमारे छात्रावास के बच्चों ने तब बोला था जब वो जल नामक बैंड का कॉन्सर्ट देखने गए थे। उस असत्य पर बाद में आने का वचन देते हुए मैं माँओं कि असंतुष्टि पर पुनः प्रकाश डालना चाहूंगी।
जब मैं पंतनगर विश्वविद्यालय में पढ़ रही थी तब हम जाड़ों के दिनों में धूप में बैठे हुए विश्व के अनेकानेक विषयों पर चर्चा करते करते अपनी अपनी माताओं पर आ गए। "हाँ मेरी मम्मी भी यही कहती है " के उदघोष के साथ छात्रावास कि छत गूँज उठी। सभी माँओं द्वारा कहे गए वाक्य आश्चर्यजनक रूप से एक से थे। कुछ उदाहरण
१. पापा बौखलाए से कुछ ढूंढ़ रहे हैं। थोड़ी देर बाद कहते हैं "अरे भई फ्रिज के ऊपर जो पेन रखी हुई थी वो कहाँ गई?"
मम्मी- "अरे वहीँ होगी।"
पापा- "अरे नहीं है यार।"
तभी मम्मी भी ढूंढती हुई आती हैं और उन्हें भी जब पेन नहीं मिलती तो वे कहती हैं - "मैंने तो यहीं रक्खी थी, ये बच्चों ने इधर उधर कर दी होगी।
इल्ज़ाम सदा ही बच्चों के सर!
२. अगला सीन है सब्ज़ी मण्डी का, जहाँ मम्मी हमें तरह तरह के इमोशनल ब्लैकमेल करती हुई ले गई हैं। "मेरे साथ क्यों जाओगे अब तुम। बड़े हो गए हो अब तो। मम्मी के साथ जाने में शर्म आती है।"
तो हम विभिन्न प्रकार के रंगों और आकारों की सब्जियों से लदे हुए चल रहे हैं। पूरे महीने की खरीद ली हैं, क्या भरोसा अगली बार बच्चे साथ आयें या न आयें।
मम्मी- " ऋचा ज़रा ऑटो बुलाना जल्दी से।"
जबतक मैं ऑटो वाले से बात करती हूँ तब तक मम्मी आकर सब्ज़ी का पहाड़ ऑटो में लादती हैं और ऑटो वाले से कहती हैं- " भइया ज़रा दो मिनट रुकना आलू लेने हैं।"
ऑटो वाला - "मैडम टाइम जाता है।"
मैं - " मम्मी हो गया ना अब। इतना खरीद के चैन नहीं आया? "
मम्मी- "चुप रह तू।" (ऑटो वाले से) " भइया बस दो मिनट ही तो रुकना है।"
अंततः जीत मम्मी की होती है और आलू का बोरा ऑटो में लाद दिया जाता है।
वापस जाते हुए मम्मी मेरी तरफ़ मुडती हैं और कहती हैं -"ये तिलक रोड में गजक बड़े अच्छे मिलते हैं। ऋचा ज़रा ऑटो रुकवाना तो......"
गुरर्र
३. तुलनात्मक विवरण एक ऐसी चीज़ है जो स्कूलों में नहीं मम्मियों के द्बारा सिखाया जाना चाहिए। यह विधि का विधान है और हर बच्चे के भाग्य में लिख दिया गया है।
मम्मी- " इतनी देर से देख रही हूँ इधर-उधर, इधर-उधर घूमने में लगी है। पढ़ाई क्यों नहीं कर लेती है?"
मैं- [ढिठाई से] "अभी कर लूंगी ना थोड़ी देर में।"
मम्मी- "नीचे आशू अर्पण को देखो। कितना कहना मानते हैं अपनी मम्मी का। एक तुम हो। मेरी कोई बात ही नहीं सुनते हो।"
मैं- "उन्हीं को बना लो फ़िर अपने बच्चे।"
मम्मी- "तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है।"
[हा हा हा। यहाँ जीत हमारी!!]
४. यह तब होता है जब आप छुट्टियों में घर आते हैं। कुछ आरंभिक दिनों में मम्मी अच्छा खाना बनाने में व्यस्त हो जाती हैं। जब एक हफ्ता गुज़र जाता है तो सबकुछ बदल जाता है। सात बजे ही नौ बज जाते हैं।
सुबह के सात बजे हैं और आपको लगता है कि आप नींद के सुख सागर में गोते लगा रहे हैं। तभी अचानक आपको यह सुनाई देगा....
"ऋचा उठ जा। कब तक सोई रहेगी। जल्दी उठ। नौ बजे गए हैं।
मैं- "हाँ उठ रही हूँ।" [और मैं पुनः सो जाती हूँ]
मम्मी कमरे में अवतरित होती हैं और फ़िर से चिल्लाती हैं।
मैं-" मम्मी यार सोने दो न प्लीज़।"
मम्मी- "आधा दिन बीत गया है। तुम लोग सोये पड़े हो। चलो उठ जाओ।"
और कमरे से जाते जाते यदि गर्मियां हैं तो मम्मी पंखा बन्द कर देंगी और ठण्ड के दिन हैं तो समझिये आपकी रजाई उनके साथ चली गई।
ये कुछ अनमोल चीज़ें और खट्टी मीठी लड़ाईयां हैं जो मम्मियों को मम्मी बनती हैं :)
11 comments:
awww... very cutely written!!
i love d fact that thrz sch a thin line of demarcation between the specific n generic.. i cn soo picture aunty saying every word of dis.. :)
scene 2.. same screenplay n itz my mum n me!
Lovely!
mast hai.. i liked it..
very nice post...!!!!
Hi didi, i am rahul's friend from cognizant..
we all liked ur post very much..
:-)
Thanks! :)
:) .. nice one ,, aunty ji ne padha ya nahi ?.. ab thode din bad SAAS puran aayega :) .. waiting for that
aunty ji ne padha aur unko dukh b hua padh k.. ki ajkal k bachchon k ye haal hain.. khuleaam mummiyon ki burai karte hain..!!
I so miss all this writing stuff of yours...way to go! I loved every bit of it. there can also be a papa puran, don't you think???
papa puran can be in your case Bhawana..
My dad is always with a flat face...
Khushi ho ya gam..
Ha ha! No mummy can be unhappy with her kids doing something soooo good and specially teri to bilkul nahi. Namita
Hahaha. Thank you mausi. Ye sab to badmaashi mein likha hai kyonki hum badmaash bachhe hain
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