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July 03, 2011

सीमेंट, चॉक और थप्पड़

अल्मोड़ा पढ़े लिखे लोगों का गढ़ है और रसायन विज्ञान के धुरंधर शिक्षकों का भी. यह मेरा अटल विश्वास है कि यहाँ से बेहतर रसायन विज्ञान के शिक्षक अब किसी दूसरे ग्रह के अल्मोड़ा नामक स्थान पर ही मिलेंगे.

कुछ दिनों पहले मेरा मित्र कौशल मुझसे मिलने घर आया. संयोग से मेरी परम मित्र रागिनी भी उस समय मेरे घर पर ही थी. अतः स्वाभाविक रूप से स्कूल की बातें, हम कितने अच्छे और आदर्श विद्यार्थी थे  और अब कितने खराब बच्चे आते हैं आदि आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर गौर करने के पश्चात स्कूल के पुराने किस्से चल पडे. अनेकानेक किरदारों के बीच से गुज़रते हुए हम पहुचे पारु पर जो कि कक्षा के रोचाकतम किरदारों में से एक थी. उसका स्वभाव ही कुछ इस प्रकार था कि वह सदा ही चुटीले वातावरण उत्पन्न करने में सफल रहती थी.
यदि आप कभी अल्मोड़ा जाएँ तो आर्मी स्कूल कि ओर चढ़ती रोड से लगी सीमेंट की एक दीवार पर पारु खुदा हुआ दिखाई देगा. एक बार रागिनी उस रास्ते से गुज़री तो उसकी नज़र दीवार पर लिखे हुए 'पारु' पर पड़ी. घर पहुँचने पर जब उसने पारु को बताया तो पारु ने जवाब दिया- 'लिख दिया होगा किसी लड़के ने. आजकल लड़के बड़ा परेशान करते हैं.' रागिनी फिर पारु से बोली - ' राइटिंग तो पारु वो तेरी जैसी ही लग रही थी पर.' तो थोडा रुक कर पारु बोली -' सीमेंट एकदम फ्रेश दिखाई दे रहा था. किसका मन नहीं करता?'

हमारे समय में स्कूल में मार पड़ने का चलन बंद नहीं हुआ था. आँख दिखाने पर माता - पिता ' हाय हमारे बच्चे को घूर कैसे दिया? ' कहते हुए स्कूल नहीं आ धमकते थे. कक्षा के कुछ ऐसे लोग थे जो हमेशा मार खाने वालों की सूचि में होते थे और कुछ शिक्षक ऐसे जो हमेशा मारने के मूड में. गणित पढ़ाने वाले योगेश सर यूँ तो बहुतायत में पीटते थे परन्तु कभी मन न होने पर वह डस्टर झाड-झाड कर चॉक के चूरे का एक ढेर बनाते थे. फिर उस दिन के बकरे को बुलाकर इस प्रकार उसमें मुह रगड़वाते थे कि नाक और गाल सफ़ेद हो जाएँ. तत्पश्चात दूसरों कि हंसी का पात्र बन आपको पूरे पीरियड भर ऐसे ही बैठना है. यदि हटाने या मिटाने की कोशिश की तो डंडे खाने के लिए तैयार रहिये.
अंग्रेजी पढ़ाने वाले रवि सर का अंदाज़ थोडा भिन्न था. मारने के मामले में वे थोड़े आलसी थे. खड़ा करने एवं मुर्गा बनाने वाली नीति अपनाने में वे अधिक विश्वास रखते थे. थोडा भेदभाव इसमें अवश्य व्याप्त था. उदाहरण के तौर पर कुछ सज़ाएं इस प्रकार थीं -
  • कौन कौन होम वर्क की कॉपी नहीं लाया है? गर्ल्स खड़े हो जाइए बौय्ज़ हाथ ऊपर कर के खड़े हो जाइए. 
  • डायरी नहीं लाये? लड़कियों खड़े हो जाओ, लड़के मुर्गा बन जाओ.
  • जो जो कॉपी नहीं लाये हैं बहार निकल जाओ. लडकियां सीट पर खड़े हो जाओ.
यदि रवि सर किसी फ्री पीरियड या टीचर के न आने पर क्लास ले रहे हैं, तो हुनर प्रदर्शन का सिलसिला चलता था. या तो आप आकर 'चार चुटकुले'  सुनाइये या गाना गाईये अथवा नृत्य भी कर सकते हैं.
तो इस प्रकार इसी टाइप के एक पीरियड में राहुल पन्त की कक्षा में रवि सर पधारे और चार चुटकुले या एक गाने वाला कार्यक्रम प्रारंभ हुआ. एक एक कर कक्षा के बच्चे आये और बहादुरी के साथ अपनी अपनी बारी झेलकर गए. कुछ बच्चों के प्रोत्साहित करने पर उसी समय चला हुआ शंकर महादेवन का ब्रेथलेस गाना जब राहुल ने गाया तो सर प्रभावित न हो सके. अतः राहुल ने दुसरे गाने के रूप में 'संदेसे आते हैं ' गुनगुनाया जिसके अंत में राहुल को रवि सर से दो थप्पड़ ' ये कोई गाना हुआ ये ' डायलौग के साथ पड़ गए.
दुखी राहुल ये कभी समझ न पाया की इसका कारण क्या था.

    January 21, 2009

    परम मित्र

    कभी कभी गुरुत्वाकर्षण के न होने पर भी दो मित्रों की मित्रता में दरार आ सकती है. परन्तु कारण यहाँ भी मिलता जुलता ही है.


    आर्मी स्कूल में १९९८ में कक्षा आठ के छात्र-छात्राएं कुछ ज्यादा ही बातूनी हो चले थे. और अगर अतिशयोक्ति की जाए तो इसकी वजह से अनुशासन के पर्यायवाची आर्मी स्कूल की इमेज को गहरा झटका सा लग रहा था. अतः हमारी अध्यापिका ने यह सुनिश्चित किया कि या तो दो लड़को के बीच में एक लड़की बैठेगी या दो लड़कियों के बीच में एक लड़का. लड़का लड़की के भेद से अनभिज्ञ हमारा बातें करना निरंतर बहती हुई सरिता कि भाँति चलता रहा. कक्षा में सबसे ज्यादा शोर जिस कोने से आता था वह संयोग से कुछ उस जगह था जहाँ मैं और मेरी परम मित्र रागिनी के बीच में हिमांशु बैठता था एवं इसके ठीक आगे दो परम मित्रों राहुल और विवेक के बीच राशी. हमारी पढ़ाई की गाड़ी बातचीत के महत्त्वपूर्ण कार्य में विघ्न तो नहीं ही डाल रही थी अतः हम छः लोग प्रसन्नचित्त ही रहते थे.


    विवेक बड़ा ही विनोदी स्वभाव का लड़का था एवं हर समय हँसी मज़ाक करना जैसे उसका कर्त्तव्य था. इसके विपरीत राहुल सदा ही शांत एवं गंभीर रहता था. एक दिन हमने देखा की राहुल कुछ रुष्ट सा है और विवेक से बात नहीं कर रहा है. हमने राहुल से कारण पूछा तो वह चुप रहा. फिर हमारी प्रश्न भरी आँखें विवेक की ओर मुड़ी और वह हमको देख कर मुस्कुरा दिया. थोड़ा और पूछने पर हमें पता चला की राहुल के रूठने का कारण गुरुत्वाकर्षण तो बिल्कुल नहीं था.


    राहुल और विवेक एक ही इमारत में क्रमशः ऊपर नीचे रहते थे. पिछले दिन राहुल विवेक के घर खेलने आया और अपनी चप्पलें वहीं भूलकर ऊपर चला गया. विवेक ने जब यह देखा तो उसने एक अच्छा मित्र होने के नाते उसकी चप्पलें वापस लौटानी चाहीं. इन चप्पलों को लौटाने का सबसे सरल रास्ता विवेक को राहुल के बारामदे से दीख पड़ा. अब इसे संयोग कहें या राहुल का दुर्भाग्य विवेक के चप्पल ऊपर फेंकते ही राहुल अपने बारामदे में अवतरित हुआ. दोनों ही चप्पलों ने राहुल के सर को तबले की तरह बजा दिया. यह तो हम नहीं जानते की तबला बजने पर राहुल के मुख से जो संगीत निकला वह शास्त्रीय, लोक या आधुनिक था परन्तु राहुल ने विवेक से बोलना बंद कर दिया था.