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January 21, 2009

परम मित्र

कभी कभी गुरुत्वाकर्षण के न होने पर भी दो मित्रों की मित्रता में दरार आ सकती है. परन्तु कारण यहाँ भी मिलता जुलता ही है.


आर्मी स्कूल में १९९८ में कक्षा आठ के छात्र-छात्राएं कुछ ज्यादा ही बातूनी हो चले थे. और अगर अतिशयोक्ति की जाए तो इसकी वजह से अनुशासन के पर्यायवाची आर्मी स्कूल की इमेज को गहरा झटका सा लग रहा था. अतः हमारी अध्यापिका ने यह सुनिश्चित किया कि या तो दो लड़को के बीच में एक लड़की बैठेगी या दो लड़कियों के बीच में एक लड़का. लड़का लड़की के भेद से अनभिज्ञ हमारा बातें करना निरंतर बहती हुई सरिता कि भाँति चलता रहा. कक्षा में सबसे ज्यादा शोर जिस कोने से आता था वह संयोग से कुछ उस जगह था जहाँ मैं और मेरी परम मित्र रागिनी के बीच में हिमांशु बैठता था एवं इसके ठीक आगे दो परम मित्रों राहुल और विवेक के बीच राशी. हमारी पढ़ाई की गाड़ी बातचीत के महत्त्वपूर्ण कार्य में विघ्न तो नहीं ही डाल रही थी अतः हम छः लोग प्रसन्नचित्त ही रहते थे.


विवेक बड़ा ही विनोदी स्वभाव का लड़का था एवं हर समय हँसी मज़ाक करना जैसे उसका कर्त्तव्य था. इसके विपरीत राहुल सदा ही शांत एवं गंभीर रहता था. एक दिन हमने देखा की राहुल कुछ रुष्ट सा है और विवेक से बात नहीं कर रहा है. हमने राहुल से कारण पूछा तो वह चुप रहा. फिर हमारी प्रश्न भरी आँखें विवेक की ओर मुड़ी और वह हमको देख कर मुस्कुरा दिया. थोड़ा और पूछने पर हमें पता चला की राहुल के रूठने का कारण गुरुत्वाकर्षण तो बिल्कुल नहीं था.


राहुल और विवेक एक ही इमारत में क्रमशः ऊपर नीचे रहते थे. पिछले दिन राहुल विवेक के घर खेलने आया और अपनी चप्पलें वहीं भूलकर ऊपर चला गया. विवेक ने जब यह देखा तो उसने एक अच्छा मित्र होने के नाते उसकी चप्पलें वापस लौटानी चाहीं. इन चप्पलों को लौटाने का सबसे सरल रास्ता विवेक को राहुल के बारामदे से दीख पड़ा. अब इसे संयोग कहें या राहुल का दुर्भाग्य विवेक के चप्पल ऊपर फेंकते ही राहुल अपने बारामदे में अवतरित हुआ. दोनों ही चप्पलों ने राहुल के सर को तबले की तरह बजा दिया. यह तो हम नहीं जानते की तबला बजने पर राहुल के मुख से जो संगीत निकला वह शास्त्रीय, लोक या आधुनिक था परन्तु राहुल ने विवेक से बोलना बंद कर दिया था.