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September 23, 2011

बैंड बाजा राहुल

गंभीर विषयों पर अपना हाथ साफ़ कर नाकाम अर्थात स्वयं की लेखनी से भयंकर रूप से असंतुष्ट हो, ख़ुद ही का मज़ाक उड़ा मैं वापस से उन्हीं जानी-पहचानी स्थितियों और लोगों के बारे में लिखने की ओर फिर मुड गयी.

संयोग से अपने प्यारे भाई राहुल के बारे में ही एक अन्य घटना लिखने को मैं पुनः बाध्य हो गयी. यूं तो राहुल एक प्रतिभावान, बुद्धिकौशल से परिपूर्ण, कुशल खिलाड़ी (बिजली की गति से गोल दागने वाला) है परन्तु दुर्भाग्य यह सब कहाँ देखता है? वह तो कभी भी, किसी भी प्रकार " लो मैं आ गया!" कहता हुआ आ खड़ा होता है. राहुल के समक्ष भी उसकी अनेकानेक प्रतिभाओं को नज़रंदाज़ करता यह दुष्ट दुर्भाग्य आ खड़ा हुआ.

राहुल पन्त अनेकों कलाओं में निपुण है जिनमें से एक कला नृत्यकला भी है. नृत्यकला में सफलता प्राप्त करने के कारण अपने महाविद्यालय में यह 'डांसर-भाई' आदि पदवियों से सम्मानित भी किया गया है. पर यह तो विधि का विधान और बुनियादी सत्य है, कि अर्श पर पहुँचने के लिए कोई भी सफल व्यक्ति फ़र्श से ही शुरुआत करता है. अतः राहुल भाई का भी एक ऐसा समय था जब उसकी डांस वाली प्रतिभा जगज़ाहिर नहीं हुई थी और वह हौकी में आश्चर्यजनक रूप से गोल दाग कर ही हर्ष और प्रशंसा प्राप्त करता था. इस ही समय में कभी राहुल के (और मेरे) मामा का विवाह होना तय हुआ. विवाह के लिए बारात हल्द्वानी से अल्मोड़ा आनी थी. यह तो पाठकों को ज्ञात है कि राहुल चौथी कक्षा का बालक था और इस उम्र में बच्चों में हर छोटी से बड़ी चीज़ के लिए कौतुहल रहता है. राहुल में भी मामा की शादी के लिए विशेष कौतुहल था. शादी का दिन आया और हर्षानुमोदित राहुल बारात के साथ अल्मोड़ा की ओर चल पड़ा. अल्मोड़ा पहुँचने पर बारात बस से सड़क पर उतरी. बैंड वालों ने बाजे बजाना प्रारंभ किया और धीरे-धीरे लोग संगीत पर थिरकने लगे. राह चलते लोग भी बारात को देखते. कुछ एक घरों में से लोग अपनी अपनी छत पर खड़े हो फ्री के तमाशे का आनंद उठाते.

इस सब के बीच में ख़ुशी में झूमते राहुल ने भी नृत्य के माध्यम से अपने हर्ष को प्रकट करना चाहा. अतः वह नृत्य करते हुए लोगों के बीच ख़ुशी-ख़ुशी घुस गया. राहुल की भूरी-भूरी प्रशंसा करते, सबको उल्लुओं की तरह ताकते मैं और मेरी बहन अन्नू धीरे- धीरे कोने में चल रहे थे तथा एक दूसरे को "पहले तू जा , पहले तू जा " कहकर नृत्य करते समूह की ओर जाने के लिए कभी-कभी प्रोत्साहित भी कर रहे थे. पर जा नहीं रहे थे. थोड़ी ही देर के उपरान्त उसी भीड़ के मध्य से गुस्से की आग में धधकता हुआ राहुल हमें बाहर आता दिखाई दिया. कारण पूछने पर दांत पीसता हुआ राहुल बोला- 
"मैं अन्दर गया नाचते-नाचते तो एक आदमी की लात लग गयी. खैर फिर भी मैं भूलकर नाचने लगा तो थोड़ी देर के बाद एक दूसरे आदमी के हाथ से मुझे थप्पड़ लग गया. मुझे भी गुस्सा आया और मैं उस आदमी को मुक्का मारकर बाहर चला आया. मैं डांस करने जा रहा हूँ और मार रहे हैं. हद है. अबसे कभी नहीं करूंगा डांस."
क्रोध से भरे हुए राहुल ने कहा. 

इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को न जाने आज कितने वर्ष हो गए हैं. और इसे संयोग कहिये या विधि का विधान राहुल ने उसके बाद बहुत डांस किया है.

[कृपया ध्यान दें. यह न समझें की मैं अपने प्रिय भाई राहुल की जान के पीछे हाथ धो के पड़ी हुई हूँ. यह लेख उससे पूछ कर, आज्ञा लेकर ही लिखा गया है हाँ. कृपया हमारे बीच फूट डालने की कोशिश न करें प्लीज़ हाँ. हाँ नहीं तो. ]

January 20, 2009

क्रोध और गुरुत्वाकर्षण

क्रोध एवं गुरुत्वाकर्षण परस्पर सम्बंधित हैं. यह बात अजीब लगती है परन्तु सत्य है. इसका आभास मुझे बचपन से हो चला था.

बात तब की है जब हम नैनीताल में आशुतोष भवन में रहते थे जो कि एक चार मंजिली इमारत थी. इमारत के सामने एक छोटा सा मैदान था जिसपर मकान मालिक का पोता पियूष खडा था. पहली मंजिल के बरामदे पर कहानी का दूसरा पात्र राहुल (जिसे अगर मेरा भाई कहा जाए तो गलत नहीं होगा), खडा हुआ प्रकृति का आनंद ले रहा था.

यह संदेह का विषय है कि राहुल इस बात से अनभिज्ञ था कि पियूष नीचे खडा है. क्योकि राहुल एक सामान्य बालक था और देखने सुनने में भली प्रकार से सक्षम था अतः हम यह मान कर चलते हैं कि राहुल ने पियूष को देख ही लिया था. हम राहुल को एक लापरवाह लड़का भी मान सकते हैं क्योकि राहुल ने लापरवाही दिखाते हुए नीचे की ओर अपने मुख से एक द्रव बहाया अर्थात थूका. थूक ठीक पियूष के पास आकर गिरा. स्थायी क्रोध जो कि किसी को भी कभी भी अपना शिकार बना सकता है पियूष को पकड़ चुका था. इसी क्रोध के प्रभाव में पियूष ने बुद्धि लगाकर ऊपर की ओर थूक दिया. क्योकि पियूष एक छोटा बालक था अतः वह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से अनभिज्ञ था और भगवान् ने भी पियूष के लिए इस सिद्धांत को बदलना ज़रूरी नहीं समझा. तो थूक ठीक वही आकर गिरा जहाँ से उसकी उत्पत्ति हुई थी, अर्थात पियूष की नाक के नीचे.

निष्कर्ष यह तो निकलता ही है की क्रोध भी सोच समझकर ही करना चाहिए साथ में यह भी की यदि आप कभी थूकना चाहें तो पहले गुरुत्वाकर्षण का भली प्रकार अध्यन कर लें.