January 20, 2009

क्रोध और गुरुत्वाकर्षण

क्रोध एवं गुरुत्वाकर्षण परस्पर सम्बंधित हैं. यह बात अजीब लगती है परन्तु सत्य है. इसका आभास मुझे बचपन से हो चला था.

बात तब की है जब हम नैनीताल में आशुतोष भवन में रहते थे जो कि एक चार मंजिली इमारत थी. इमारत के सामने एक छोटा सा मैदान था जिसपर मकान मालिक का पोता पियूष खडा था. पहली मंजिल के बरामदे पर कहानी का दूसरा पात्र राहुल (जिसे अगर मेरा भाई कहा जाए तो गलत नहीं होगा), खडा हुआ प्रकृति का आनंद ले रहा था.

यह संदेह का विषय है कि राहुल इस बात से अनभिज्ञ था कि पियूष नीचे खडा है. क्योकि राहुल एक सामान्य बालक था और देखने सुनने में भली प्रकार से सक्षम था अतः हम यह मान कर चलते हैं कि राहुल ने पियूष को देख ही लिया था. हम राहुल को एक लापरवाह लड़का भी मान सकते हैं क्योकि राहुल ने लापरवाही दिखाते हुए नीचे की ओर अपने मुख से एक द्रव बहाया अर्थात थूका. थूक ठीक पियूष के पास आकर गिरा. स्थायी क्रोध जो कि किसी को भी कभी भी अपना शिकार बना सकता है पियूष को पकड़ चुका था. इसी क्रोध के प्रभाव में पियूष ने बुद्धि लगाकर ऊपर की ओर थूक दिया. क्योकि पियूष एक छोटा बालक था अतः वह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से अनभिज्ञ था और भगवान् ने भी पियूष के लिए इस सिद्धांत को बदलना ज़रूरी नहीं समझा. तो थूक ठीक वही आकर गिरा जहाँ से उसकी उत्पत्ति हुई थी, अर्थात पियूष की नाक के नीचे.

निष्कर्ष यह तो निकलता ही है की क्रोध भी सोच समझकर ही करना चाहिए साथ में यह भी की यदि आप कभी थूकना चाहें तो पहले गुरुत्वाकर्षण का भली प्रकार अध्यन कर लें.

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