[नरेन्द्र पन्त के द्वारा स्वयं को उससे भी ज़्यादा मूर्ख सिद्ध किए जाने के पश्चात् मूर्खता की दुनिया से परे हटकर यह लेख मैंने ऑरकुट में नहीं वरन् यहीं लिखा है। ]
यदि हम कहें कि हमें किसी मेहनती व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करना है और आप धीरुभाई , विजय माल्या इत्यादि की रट लगाना आरम्भ करें तो यह सर्वथा उचित नहीं होगा। स्टीवन लेविट के अनुसार जब हम किसी घटना या वाकये का अवलोकन करते हैं तो उसे बड़े ही सतही तौर पर देखते हैं। यह बात साधारण जन की भाँति हमपर भी लागू होती है।
यूँ तो कहा जाता है कि किसान बड़ा मेहनती होता है, परन्तु यह नहीं कि इस तथ्य की आड़ में हम अन्य मेहनती लोगों को उनका श्रेय देना भूल जाएँ। कहने का तात्पर्य यह है कि यहाँ बात रिक्शेवाले की हो रही है। यदि हम ध्यान दें तो पायेंगे कि मेहनत और लगन के साथ लोगों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुँचाता हुआ यह रिक्शेवाला, दिनभर मेहनत करता है। रिक्शा एक तिपहिया वाहन है जिसे पेडल मारकर चलाया जाता है। पीछे दो या तीन लोगों के बैठने के लिए स्थान होता है एवं आगे वह गद्दी जिसमें मेहनतकश रिक्शेवाला बैठकर लोगों को ठेलता है।
शाम का समय था और सुहावनी हवा चल रही थी जो बिल्कुल भी बेमतलब नहीं लगती थी। कहानी की मुख्य पात्र मैं अपनी माँ, भाई , बुआ उनके बच्चों एवं अन्य परिजनों के साथ हल्द्वानी के बाज़ार में घूम रही थी। काफ़ी देर घूमने के पश्चात हमें ये आभास हुआ कि घर दूर है अतः वापस जाने के लिए मेहनतकश रिक्शेवाले की मदद तो लेनी ही पड़ेगी। इसीलिए हमने एक रिक्शेवाले को बुलाया और भावताव के पश्चात बुआ, माँ और तीन छोटे छोटे बच्चे रिक्शे पे सवार हो लिए। रिक्शेवाले की गद्दी के ठीक नीचे जो छोटी गद्दी होती है उसपर मेरा अधिपत्य हुआ करता था और कुछ भी हो जाए, मैं वहीं बैठती थी। तो अपने इस व्यवहार के अनुसार इस बार भी मैंने कुछ ऐसा ही किया। कुछ देर चलने के उपरांत मेरी माँ एवं बुआ ने यह इंगित किया कि जिस गद्दी पर मैं विराजमान हूँ वह कुछ ऊंची सी है। उन लोगों के ऐसा कहने पर मुझे भी यह बात सत्य प्रतीत हुई। तो मैंने निरीक्षण परीक्षण करने पर जाना कि मैं मेहनतकश रिक्शेवाले की गद्दी पर विराजित थी। रिक्शेवाला मेहनती होने के साथ साथ शांत स्वभाव का भी जान पड़ा, क्योंकि इतनी देर तक खड़े खड़े रिक्शा चलाने के उपरांत भी उसने मुझसे हटने को नहीं कहा था। एक और बात जिसका पता चला वो यह थी कि जब आप किसी हास्यास्पद स्थिति में हो तो भाई, बन्धु, माता... कोई भी साथ नहीं देता, क्योंकि सभी दिल खोलकर मुझपे हँसे थे.
यदि हम कहें कि हमें किसी मेहनती व्यक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करना है और आप धीरुभाई , विजय माल्या इत्यादि की रट लगाना आरम्भ करें तो यह सर्वथा उचित नहीं होगा। स्टीवन लेविट के अनुसार जब हम किसी घटना या वाकये का अवलोकन करते हैं तो उसे बड़े ही सतही तौर पर देखते हैं। यह बात साधारण जन की भाँति हमपर भी लागू होती है।
यूँ तो कहा जाता है कि किसान बड़ा मेहनती होता है, परन्तु यह नहीं कि इस तथ्य की आड़ में हम अन्य मेहनती लोगों को उनका श्रेय देना भूल जाएँ। कहने का तात्पर्य यह है कि यहाँ बात रिक्शेवाले की हो रही है। यदि हम ध्यान दें तो पायेंगे कि मेहनत और लगन के साथ लोगों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुँचाता हुआ यह रिक्शेवाला, दिनभर मेहनत करता है। रिक्शा एक तिपहिया वाहन है जिसे पेडल मारकर चलाया जाता है। पीछे दो या तीन लोगों के बैठने के लिए स्थान होता है एवं आगे वह गद्दी जिसमें मेहनतकश रिक्शेवाला बैठकर लोगों को ठेलता है।
शाम का समय था और सुहावनी हवा चल रही थी जो बिल्कुल भी बेमतलब नहीं लगती थी। कहानी की मुख्य पात्र मैं अपनी माँ, भाई , बुआ उनके बच्चों एवं अन्य परिजनों के साथ हल्द्वानी के बाज़ार में घूम रही थी। काफ़ी देर घूमने के पश्चात हमें ये आभास हुआ कि घर दूर है अतः वापस जाने के लिए मेहनतकश रिक्शेवाले की मदद तो लेनी ही पड़ेगी। इसीलिए हमने एक रिक्शेवाले को बुलाया और भावताव के पश्चात बुआ, माँ और तीन छोटे छोटे बच्चे रिक्शे पे सवार हो लिए। रिक्शेवाले की गद्दी के ठीक नीचे जो छोटी गद्दी होती है उसपर मेरा अधिपत्य हुआ करता था और कुछ भी हो जाए, मैं वहीं बैठती थी। तो अपने इस व्यवहार के अनुसार इस बार भी मैंने कुछ ऐसा ही किया। कुछ देर चलने के उपरांत मेरी माँ एवं बुआ ने यह इंगित किया कि जिस गद्दी पर मैं विराजमान हूँ वह कुछ ऊंची सी है। उन लोगों के ऐसा कहने पर मुझे भी यह बात सत्य प्रतीत हुई। तो मैंने निरीक्षण परीक्षण करने पर जाना कि मैं मेहनतकश रिक्शेवाले की गद्दी पर विराजित थी। रिक्शेवाला मेहनती होने के साथ साथ शांत स्वभाव का भी जान पड़ा, क्योंकि इतनी देर तक खड़े खड़े रिक्शा चलाने के उपरांत भी उसने मुझसे हटने को नहीं कहा था। एक और बात जिसका पता चला वो यह थी कि जब आप किसी हास्यास्पद स्थिति में हो तो भाई, बन्धु, माता... कोई भी साथ नहीं देता, क्योंकि सभी दिल खोलकर मुझपे हँसे थे.
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