भारतवर्ष में अंग्रेज़ी घट-घट में कुछ इस प्रकार बसी है जैसे घी और खिचड़ी। हम भारतीयों का यह मानना है कि इस भाषा को बोलते हुए उच्चारण साफ़ और स्पष्ट होना चाहिए। हम यह भी मानते हैं कि गोरों से अधिक भली प्रकार से हम ही अंग्रेज़ी बोलते हैं- शब्दों के स्पष्ट उच्चारण के साथ। वे तो आधे शब्द खा जाते हैं और बाकी आधों का चूँ-चूँ का मुरब्बा बना देते हैं। इसी बे सिर-पैर की अंग्रेज़ी का शिकार एक दिन हिमांशु भईया बन गए।
यदि आप पहाडों के भ्रमण पर हैं और कभी अल्मोड़ा जाने की सोचें तो वहाँ पहुँचने पर आपको 'सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आपका स्वागत है' का बड़ा सा पटल दिखाई देगा। क्योंकि अल्मोड़ा के निकट कई दर्शनीय स्थल हैं अतः यहाँ बहुतायत में लोग भ्रमण के लिए आते हैं जिसमें एक बड़ी संख्या में विदेशी भी सम्मिलित हैं। एक दिन जब हिमांशु भईया संध्याकालीन भ्रमण के लिए निकले तो माल रोड पर घूमते-घूमते उन्हें एक विदेशी ने पकड़ लिया। 'एक्स्क्याऊज़ मई' वह बोला। 'यस्' भईया ने कहा। 'खड या ठल मी वर्ज हौअल खालश ' वह बोला। 'पार्डन ' भईया ने उस अश्राव्य वाक्य को फ़िर से सुनने की कोशिश में कहा। 'हौअल खालश, हौअल खालश' वह बोला। एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने पर भी भईया उसकी बात समझने में असमर्थ रहे। इज्ज़त का बैंड बजते देख भईया ने अपने कान और मुँह की और इशारा किया और ' आ आ आ ' बोलकर सर हिला दिया। विदेशी व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति की ओर रुख किया, उससे कुछ पूछा और मुस्कुराता हुआ चल दिया। कौतुहलवश भईया उस व्यक्ति के पास गए और बोले 'भाई साब ये पूछ क्या रहा था?' 'वो होटल कैलाश कहाँ है ये पूछ रहा था।' उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
'अब बताओ, लिखा कुछ और है और उसे बोलते कुछ और हैं। इसमें हमारी क्या गलती है?' भईया हँसते हुए हमसे बोले। और इस प्रकार हमारे ट्यूशन के एक सुहावने दिन का अंत हुआ।
यदि आप पहाडों के भ्रमण पर हैं और कभी अल्मोड़ा जाने की सोचें तो वहाँ पहुँचने पर आपको 'सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में आपका स्वागत है' का बड़ा सा पटल दिखाई देगा। क्योंकि अल्मोड़ा के निकट कई दर्शनीय स्थल हैं अतः यहाँ बहुतायत में लोग भ्रमण के लिए आते हैं जिसमें एक बड़ी संख्या में विदेशी भी सम्मिलित हैं। एक दिन जब हिमांशु भईया संध्याकालीन भ्रमण के लिए निकले तो माल रोड पर घूमते-घूमते उन्हें एक विदेशी ने पकड़ लिया। 'एक्स्क्याऊज़ मई' वह बोला। 'यस्' भईया ने कहा। 'खड या ठल मी वर्ज हौअल खालश ' वह बोला। 'पार्डन ' भईया ने उस अश्राव्य वाक्य को फ़िर से सुनने की कोशिश में कहा। 'हौअल खालश, हौअल खालश' वह बोला। एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने पर भी भईया उसकी बात समझने में असमर्थ रहे। इज्ज़त का बैंड बजते देख भईया ने अपने कान और मुँह की और इशारा किया और ' आ आ आ ' बोलकर सर हिला दिया। विदेशी व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति की ओर रुख किया, उससे कुछ पूछा और मुस्कुराता हुआ चल दिया। कौतुहलवश भईया उस व्यक्ति के पास गए और बोले 'भाई साब ये पूछ क्या रहा था?' 'वो होटल कैलाश कहाँ है ये पूछ रहा था।' उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
'अब बताओ, लिखा कुछ और है और उसे बोलते कुछ और हैं। इसमें हमारी क्या गलती है?' भईया हँसते हुए हमसे बोले। और इस प्रकार हमारे ट्यूशन के एक सुहावने दिन का अंत हुआ।
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