February 14, 2009

लड़कियां और लड़के

हाल ही में मुहावरे और लोकोक्तियों का अध्ययन करते-करते मेरी दृष्टि 'मुँह खुला का खुला रह जाना' पर पड़ी। उदाहरण सोचने पर एक वाक्य नहीं वरन कई वाक्यों का एक समूह जो कि एक छोटे से वृत्तान्त का वर्णन करता है मुझे स्मरण हो आया।

बात कक्षा आठ की ही है, और संयोग से विद्यालय भी आर्मी स्कूल ही है। परन्तु संयोग इतना भी नहीं गहराया कि कहानी के पात्र भी हम ही हों। इसी बातूनी कक्षा में एक समय में विनीत कुमार के दायें-बाएँ राशि एवं नव्या नामक दो लड़कियां बैठा करती थीं। इनकी बातचीत की गाड़ी भी किसी न किसी प्रकार चल ही रही थी। राशि इस प्रकार की लड़कियों में गिनी जा सकती है जिन्हें परमोपरम मित्र की भाषा में टें-फें कहा जाता है। नव्या एक सीधी सरल सी लड़की थी। विनीत एक लड़का था।

हम भारतीयों ने गोरों के अनुसरण में उनके भोजन की पद्धति भी अपना ली है हम दिनभर में तीन अथवा चार बार खाना खाते हैं। अतः 'दो वक्त की रोटी' सरीखे जुमले अपनी मौलिकता खो चुके हैं। तो एक दिन इन तीनों के मध्य चर्चा का विषय था सुबह का नाश्ता। 'कौन सुबह क्या खाकर आता है' तीनों परस्पर इस विषय पर गंभीरता से अपने विचार प्रकट कर रहे थे। जैसा कि बताया गया है कि विनीत एक लड़का था और यहाँ बात खेलकूद की नहीं हो रही थी तो दुनिया के अन्य सभी विषयों की तरह यह विषय भी बेकार एवं चर्चा करने लायक नहीं था। परन्तु स्थान और समय कि विवशता ने उसके हाथ बाँध दिए थे। "कभी चौकोज़, कभी दूध और कॉर्नफ्लेक्स, कभी ब्रेड-बटर" टें-फें ने कोमलता के साथ गर्दन हिलाते हुए कहा। नव्या की ओर जब दृष्टि डाली गई तो वह सरलता से बोली "अधिकतर परांठा और सब्जी, कभी दूध इत्यादि" "विनीत तू क्या खाकर आता है?" टें-फें ने पूछा। "पाँच रोटी दाल।" विनीत ने भावविहीन मुख से दोनों की ओर देखते हुए कहा और तब हमारा यह मुहावरा चरितार्थ हो गया।

No comments: